Thursday, December 18, 2008

GAZAL

वह फिर खामोश है फिर भी कुछ नहीं कहती
बस उसके हाथ में आँचल उठा ही रहता है

वह सर कि जिसमें है ममता की अजमतों (कविता) का गुरूर
वह आसमाने मुहब्बत झुका ही रहता है

माँ मैं यह पूछता हू बताओ मुझे
कौन लोग आए थे और फिर क्या हुआ

वह एक झटके से पीछे कि सिम्त मुड़ती है
मैं जानता हू कि क्या दिखा रही है मुझे

वह धुआँ है, वहाँ लाशें हैं, तबाही है
मैं जानता हू कि वह क्या बता रही है मुझे

1 comment:

वर्षा said...

कुछ शब्द नहीं टिप्पणी के लिए भी